भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उस ठौर / साधना सिन्हा
Kavita Kosh से
मैं
नदिया सी बहती
मिलती, मिटती
पहुँची
उस ठौर
जहाँ
अनन्त मेरा
किनारा था
मांगा
उसने रंग मेरा
गति मेरी
मति मेरी
और
व्यक्तित्त्व का
विलोप
शतदल
पत्रों में
इन्द्रधनुषी रंग समेटे
चली मैं
ऊर्ध्वगामी
सहस्रार से मिलने
एकाकार हुई
रंग रहा न मेरा
गति हुई अद्श्य