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उस देश की बेटी हूँ / संगीता गुप्ता
Kavita Kosh से
उस देश की बेटी हूँ
जहाँ जन्म से पहले
लड़की भ्रूण हत्या की
शिकार होती है
यदि भूल से
दुनिया में आ ही गयी तो
भूदान, गोदान की भाँति
कन्यादान के लिए पाली जाती है
पढ़ना - लिखना
सीना - पिरोना
खाना बनाना
घर सजाना
सिखाने का एक ही मकसद
विवाह
मानो विवाह बलिदान हो
और वह
बलि का बकरा
नौकरीपेशा है तो
कामधेनु है
जल कर नहीं मरेगी
मानो सोने की मुर्गी हो
अंडे देगी , जिन्दा रहेगी
अंडे न दे तो
दहेज लाये
वरना उसे
जीने का अधिकार नहीं
निर्धन, घरेलू, बेकार को
मरना होगा
परिवार, समाज, देश पर
बोझ है वह
और
बोझमुक्त होना
इस देश में
हर पुरूष का
जन्मसिद्ध अधिकार है