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उसके हिस्से की दुनिया / मुकेश निर्विकार
Kavita Kosh से
वह भी आया था
इसी दुनिया में
जो बहुत बड़ी!
उसे भी मिली थी
यही पृथ्वी
जो है सुविस्तृत!
उसे भी मिला था
यही आकाश
जो है असीम!
लेकिन
जब होश संभाला उसने,
इन सब पर
कब्जा हो चुका था।
कैद हो चुकी थी
आकाश की अनन्तता और
धरती का विस्तार
चंद बेसब्र मुट्ठियों में।
उसे न तो
यह धरती विस्तृत लगी
और न यह आकाश अनन्त!
उसके हिस्से में आयीं
सिर्फ दो चीजें-
पीठ पर लदा बोरा
और सामने कुढ़े का ढेर
खोजा करता है जिसमें
वह हरदम
बेहद तल्लीन होकर
अपने हिस्से की दुनिया!