भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उसी से रूबरू मैं हो रहा हूँ / देवी नांगरानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसीसे रूबरू मैं हो रहा हूँ
वो जिसके साए से घबरा गया हूँ

है क़द ऊँचा तुम्हारा जानता हूँ
भले ही उम्र में तुमसे बड़ा हूँ

निवाला जब भी छीना गुरबतों ने
मैं तब से भूख से लड़ता रहा हूँ

है मिलने की बिछड़ने की रवायत
हक़ीक़त से मैं वाकिफ़ हो रहा हूँ

कहाँ संभाल कर रक्खूं उम्मीदें
दिवारो-दर को तकता जा रहा हूँ