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ऊधौ! कहा सिखावौ जोग / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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ऊधौ ! कहा सिखावौ जोग।
हमरो नित्य-जोग प्रियतम सौं, होय न पलक बियोग॥
वे ही हमरे मति-मन-‌इंद्रिय, वे ही जीवन-प्रान।
वे ही अंग-‌अंग सब हमरे, सेवैं बिनु यवधान॥
रहैं सदा हिय माँझ हमारे, भरे परम अनुराग।
रहि न सकैं वे मोहन हमकूँ, कबहूँ त्रुटि-भर त्याग॥
वे हममें, हम उनमें निसि-दिन, हम वे सदा अभिन्न।
सूर्य सूर्य की किरन-सदृस हम, रहैं कदापि न भिन्न॥
नित्य बिहार, नित्य नव लीला, नित नव सुख-संजोग।
जोग-बिधान करौ तुम उनकूँ, जिनके स्याम-बियोग॥