एक चिट्ठी : अनेक व्यथाएँ / ईश्वर करुण
एक चिट्ठी आई है, मुझको मेरे घर से दोस्तों,
चोट बहुत खाई है डाक की मुहर से दोस्तों!!
इतने चोट काटी है, फिर भी चली आती है!
मन मेरे ये भायी है, अपनी इस हुनर से दोस्तों!!
मेरे ‘कुछ’ कमाने की और ‘बहुत’ चोट खाने की
कुछ खबर ले आई है, जो आपकी नजर ऐ दोस्तों!!
माँ का संवाद :-
‘ज्योतिषी जी कहते है, ‘वहाँ लोग बहुत मरते हैं,
आजकल तो ग्रह खराब हैं, गोलियाँ-बम चलते हैं’,
आती उसे रुलाई है, मेरी सोचकर ऐ दोस्तों !
पिता का संवाद :-
‘सात-सात पेट की खर्ची, महंगाई मारे छाती में बर्छी
ऐसे में घर कैसे चलेगा, क्या तुम्हारी बोल है मर्जी,’
होती न भरपाई है, मेरे मनिआडर से दोस्तों !
बड़े भाई का संवाद :-
‘उसकी तो बस मौज है वहाँ, क्या चिंता कोई तड़प रहा है
सुनने में ये आया है, ‘शेयर’ हमारा हड़प रहा है,’
गलियाती भौजाई है, मुझ पे थूक कर ऐ दोस्तो!
छोटे भाई अमर का संवाद :-
‘आने पर एक पैंट तक नहीं, एक शीशी सेंट तक नहीं.
जाके पाँव पैदल स्कूल, आयेगा टैलेंट भी कही!
भाई क्या कसाई है!’ कहता है अमर ऐ दोस्तों!
बड़ी बहन का संवाद:-
‘बाप का सब धन तुमही लोगे, मुझको घर दरिद्र का मिला,
पी गई सब बात मैं फिर भी, इन्हें नौकरी सके न तुम दिला,’
कमाई न खटाई है, खत्म अब उमर है दोस्तों !
छोटी बहन का संवाद :-
भाई जिसका मद्रास में, “बर्थडे में फ्राक तक नहीं!”
“कान में एक टाप्स तक नहीं”, “क्रीम-पौंडस-टोल्क तक नहीं,”
उसकी भी सगाई है, मेरे ही सिर पर ऐ दोस्तों !!
पत्नी का संवाद :-
‘सुनती हूँ कि सस्ता है आपके मद्रास में सोना,
मेरी जैसी किस्मत भी राम करे हो किसी की ना
खाक क्या कमाई है, एक हसूली न हैंकर है दोस्तों!
मित्र का संवाद :-
क्या गये मद्रास हो गये तुम भी बहुत बड़े आदमी!
याद भला क्यों भी रहें हम, तुम को है किस चीज की कमी!,
ऊपरी कमाई है अब तू मातबर है दोस्तों
एक चिट्ठी की व्यथा इतनी, कौन सुने भी मेरे कथा!
शहर यों बदनाम करेगा, इसका तो गुमान तक न था!
इस दुख की क्या दवाई है, ढूँढता ‘ईश्वर है दोस्तों !!