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एक जान दुख इतने सारे / विनोद तिवारी
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एक जान दुख इतने सारे
ओ बचपन फिर से आ जा रे
दूर-दूर तक सन्नाटा है
तनहा पंछी किसे पुकारे
अनजाने सुख की आशा में
नगर-नगर भटके बंजारे
किसे पता है इस बस्ती में
कब आ जाएँगे हत्यारे
क्षमताओं के नन्हें बाज़ू
इच्छाएँ हैं चाँद सितारे