भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक पान का पत्ता / सूर्यकुमार पांडेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक पान का पत्ता,
जा पहुँचा कलकत्ता।
पकड़े अपना मत्था,
मिला वहाँ पर कत्था।

आगे मिली सुपारी,
सबने की तैयारी।

पहुँचे फिर सब पूना,
लगा वहाँ पर चूना।