भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऐसी ही किसी चिड़िया से / विमल कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं उस चिड़िया की तलाश में हूँ
जो तूफान में उजड़ जाने के बाद
अपना घोंसला फिर से बनाती है
लोरी गाकर अपने बच्चों को उसमें सुलाती है
फिर निकलती है

वह दाने की खोज में
देखता हूँ अपने घर से
हर रोज़ मैं
आसमान में उड़ती हुई
वह हमें भी कुछ न कुछ सिखाती है
ज़िन्दगी जीने का रास्ता बताती है

अँधेरी रातों के बाद
मैं भी सुबह होने का इन्तज़ार करता हूँ
ऐसी ही किसी चिड़िया से मैं भी प्यार करता हूँ ।