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ओ अबोलो माणस / ओम पुरोहित कागद
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खेत धणी करै
मजूरी
खेत में भंवै काळ
पण
अड़वो हाल अडिग
गादड़ा भूंसै
देख साम्ही
अड़वो जावै कठै।
गादड़ा नै भावै
ओ अबोलो माणस
पण उणां नै डर
फगत मिनखपणै रो
जिणां री छिब है
अडिग अड़वै में।