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ओर-छोर / प्रेमशंकर रघुवंशी
Kavita Kosh से
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धरती की गन्ध से भरी
देहलता
आलिंगन को आतुर होती
तो पाँवों की जड़ें
चट्टानों को बेधकर
पाताल तक फैल जातीं !!