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ओलम्पिक मा हम / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
हमरे
कउनि कमी जो
स्वान के पीछे हम भागी
दुनिया कहै तो कहै
मोटाई हमरे हैं लागी
तीरन्दाजी
हमते सीखीनि
ई सब दुनिया वाले
द्रोणाचार्य हमार हुआँ अब
ठाढ़े पेटु निकाले
जाय निसाना हुच्चि
राति भर काहे हम जागी?
वईसे तो
हम लोग हुआँ पर
सौ ऊपर इक्कीस
पहिले आप के चक्कर मा
हम परि जाइति उन्नीस
चाँदी सोना हमरे खातिर मिट्टी,
हम बैरागी
उड़ति चिरैय्या
कबौं न मार् यो
हमका गवा सिखावा
बस दुनिया के खातिर भईय्या
हम तो करी देखावा
हम गाँधी के चेला आहिन
हम पिस्तौल न दागी