भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ओळखाण / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
चालणिया
चालै जिको तो चोखो
चालतो-चालतो
थम जाई ना ....
.. जमानै री बातां सूं
..!
थारै खनै
रोसणी कांईं कम है ?
कै आस करै
ओळखाण री ।