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कजली / 1 / प्रेमघन

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सामान्य लय

॥बरसै अदरा कै बुँदवा ठाढ़ी भीजे गुजरौ" कौ चाल॥

जय जय प्यारी राधा रानी, जय-जय मन मोहन बृजराज॥
दोउ चकोर, दोउ चन्द दोऊ घन, दोउ चातक सिरताज।
दोऊ अमल, कमल अलि दोऊ सजे सजीले साज॥
दोऊ प्रेम भाजन, दोउ प्रेमी, दोऊ रूप जहाज।
सुकबि प्रेमघन के मिलि दोऊ सबै सँवारौ काज॥1॥

॥दूसरी॥
संस्कृत भाषा भूषित

जय जय राधा बदन सरोरुह मधुकर मोहन वनमाली॥
बिहरसि युवति समूह समेती नव शोभा शाली।
कुसुमित बकुल कदम्ब निकुंजे, गुंजति भ्रमराली॥
कंस विमर्दन कालियमन्थन कुंचित कव जाली।
प्रसरतु सदा प्रेमघन हृदि तव नव पद प्रेम प्रणाली॥2॥

॥तीसरी कजली ॥

हे हरि! हमरी ओरियाँहूँ अब फेरौ तनिक दया दृगकोर॥
राधा रमन, समन बाधा, नट नागर, नन्द किसोर।
मुनि मन मानस के मराज, बृज जुबती जन चितचोर॥
अधम उधारन, पतितन पावन, अवगुन गनौ न मोर।
बरसहु निज-निज प्रेम प्रेमघन! मन मैं सरस अथोर॥3॥

॥चौथी कजली ॥

सोर करत चहुँ ओर मोर गन चल सखि! बृन्दावन की ओर।
छाय रहे घनस्याम अवसि उत कहि नाचत मन मोर॥
ललचत लोचन चातक सन छबि पीयन हित चित चोर।
बरसत सो घन प्रेम प्रेमघन जनु आनन्द अथोर॥4॥