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कजली / 2 / प्रेमघन
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॥गृहस्थिनियों की लय॥
सिर पर सूही रे ओढ़नियाँ ओढ़े खेलै कजरी॥
हिलि मिलि के झूला सँग झूलैं सब सखी प्रेम भरी।
सजी प्रेमघन सावन के सुख मिरजापुर नगरी॥5॥
॥दूसरी॥
रिमझिम बरसै रे बादरिया मोरी चादरिया भीजी जाय।
कहाँ जाय अब हाय बचौमैं! दैया! जिय घबराय॥
लै छाता तर, छाती से लगि, प्रीति रीति सरसाय।
प्रिया प्रेमघन! पैयाँ लागौं बेगि बचावो आय॥6॥