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कब खिलेंगे फूल / सौरभ
Kavita Kosh से
चली गई ठँडी हवा
चले गए कृष्ण
बरस गए बादल
चले गए नानक
कौंध गई बिजली
चले गए महावीर
बह गया झरना
चले गए बुद्ध
फिर कब चमकेगी बिजली
न जाने कब चलेगी ठंडी हवा
फिर कब खिलेंगे फूल
मैं बैठा कर रहा हूँ इंतज़ार।