भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कमाल करै छै / त्रिलोकीनाथ दिवाकर
Kavita Kosh से
कमाल करै छै हो कमाल करै छै
हमरो बुढ़बा दुलहबा कमाल करै छै
कोरोना के डरो से घरो मे बैठलो
प्रेमो से बोलै छै नै बोलै ऐठलो
बुतरू के साथें गदाल करै छै
हमरो बुढ़बा दुलहबा कमाल करै छै।
रंग-बिरंग साड़ी से पिया लुभाबै
मांग टीेका कंगना सब एन्हैं पिन्हाबै
देखी के एंेना धमाल करै छै
हमरो बुढ़बा दुलहबा कमाल करै छै।
आँखी के मटकी से की-की बताबै
दू गज के दूरी से हमरा सताबै
ठोरो के लाली क‘ लाल करै छै
हमरो बुढ़बा दुलहबा कमाल करै छै।