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कर दिया मैंने दरकिनार मुझे / ध्रुव गुप्त
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कर दिया मैंने दरकिनार मुझे
अब है थोड़ा बहुत क़रार मुझे
लौट आऊं मैं एक दिन शायद
फिर पुकारो न एक बार मुझे
आप तो साथ चल रहे हो मेरे
फिर ये कैसा है इन्तज़ार मुझे
मुझसे मिट्टी की महक आती है
लोग कहते हैं जब गंवार मुझे
कुछ हमारा भरम भी रह जाए
आंख से इस तरह उतार मुझे
मौत से मिलके कुछ मज़ा आए
ज़िन्दगी, तू ज़रा संवार मुझे