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कर्मों के अनुरूप सभी को / बाबा बैद्यनाथ झा

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कर्मों के अनुरूप सभी को, भाग्य बनाना ही होगा।
कर्म करे जैसा जो उसको, फल पुनि पाना ही होगा।।

मानव योनि जिसे मिलती है, विहित कर्म वह मात्र करे।
अथवा वह विपरीत चले जब, यमपुर जाना ही होगा।।

अंध दौड़ में भौतिकता की, आगे बढ़ना सब चाहे।
अंत काल आएगा सबको, पुनि पछताना ही होगा।।

जंगल काट रहा जो मानव, उसके मन में स्वार्थ भरा।
प्राणवायु जब लुप्त हुई तो, प्राण गँवाना ही होगा।।

छन्द गीतिका लिखता बाबा, भरता सुन्दर भावों को।
श्रोताओं की इच्छा हो जब, इसे सुनाना ही होगा।।