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कहीं तो बचे जीवन / ओम पुरोहित ‘कागद’
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आंख उठाये
देखता है देवला
कभी आसमान को
और टटोलता है कभी
हरियाली के नाम पर बची
सीवण की आखिरी निशानी ।
कहीं तो बचे जीवन
जो कभी हरा हो
जब बरसे गरज कर
थार में थिरकता पानी ।