भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहे झूम झूम रात ये सुहानी / शैलेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहे झूम-झूम रात ये सुहानी
पिया हौले से छेड़ो दुबारा
वही कल की रसीली कहानी
कहे झूम-झूम रात ...

सुन के जिसे दिल मेरा धड़का
लाज के सर से आँचल सरका
रात ने ऐसा जादू फेरा
और ही निकला रंग सहर का
कहे झूम-झूम रात ...

मस्ती भरी ये ख़ामोशी
चुप हूँ खड़ी देखो मैं खोई सी
देख रही हूँ मैं एक सपना
कुछ जागी सी कुछ सोई सी
कहे झूम-झूम रात ...

तन भी तुम्हारा मन भी तुम्हारा
तुमसे ही बालम जग उजियारा
रोम-रोम मेरा आज मनाए
छूटे कभी न साथ तुम्हारा
कहे झूम-झूम रात ...