भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काँचनाद्रि-कमनीय कलेवर / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(राग कामोद-तीन ताल)
काञ्चनाद्रि-कमनीय कलेवर कदली-बन राजत अभिराम।
 हेम-मुकुञ्ट सिर, भूषण भूषित, अर्ध-निमीलित नेत्र ललाम॥
 वरद पाणि वपु, ध्यानमग्र मन, भक्त-कल्पतरु, नित्य निकाम।
 राघवेन्द्र-सीता-प्रिय-सेवक मन-मुख सदा जपत सियाराम॥