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कानाबाती कूउउ / बालकृष्ण गर्ग
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सरदी में थर-थर,
गरमी में लू-लू।
तुम करते हा-हा,
हम करते हू-हू।
मीठा-मीठा गप,
कड़वा-कड़वा थू,
नाकाबाती छींउउ,
कानाबाती कूउउ!
[धर्मयुग, 19 अक्तूबर 1975]