भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कामना - 3 / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विपुल अनुकूल कूल जिसका
है मनोरम मुखरित प्यारा;
जहाँ बहती है सरसा बन
कल्पना-कालिंदी- धारा।
कामना-कुंजें हैं जिसमें
अधिकतर जो है अनुरंजन;
बसो आकर उसमें मोहन,
हमारा मन है वृंदावन।