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कायान्तरण / राहुल झा

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बतर्ज़ शमशेर

तुमने मुझे और गहरा

और पवित्र
और अनन्त बना दिया...
एक ही चम्पई धूप-सी

पृथ्वी के तमाम रंगों पर छा गई
मैं और भी हरा हो गया...

तुम्हारे होने की उजली चाँदनी में
पिघलने के बाद
मैं...

भोर की एक पीली इबारत से
धुन की तरह उठा

और उठता ही चला गया...