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काल-कवलित हुए यहीं / केदारनाथ अग्रवाल

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काल-कवलित हुए यहीं
अहिंसावतारी
महाबीर तीर्थंकर
आम आदमी के समान।

अब भी
हवा में व्याप्त
हुंकारते-हुआते हैं यहाँ
आदमियों को डराते
मौत के दूत।

अकेला सूर्य
शासन करता है,
बान और बरछी-मारता
यमदूतों को-
‘जल मंदिर’ के जलाशय में,
मछलियाँ तैरती हैं जहाँ
कोइयों के कुल में,
कुलबुलाती।

रचनाकाल: २८-०२-१९८०



पावापुरी में पहुँचकर