भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किस तरह निकलूँ / शहरयार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं नीले पानियों में घिर गया हूँ

किस तरह निकलूँ

किनारे पर खड़े लोगों के हाथों में

ये कैसे फूल हैं?

मुझे रुख़्सत हुए तो मुद्दतें गुज़रीं।