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किसे चढ़ाएँ फूल आजकल / हरि फ़ैज़ाबादी
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किसे चढ़ाएँ फूल आजकल
पीपल हुए बबूल आजकल
लुत्फ़ सियासत में ही है अब
बाक़ी काम फ़ुज़ूल आजकल
गाँवों को बदनाम करो मत
कहाँ नहीं है धूल आजकल
कोई क्या कर लेगा उसका
दिन उसके अनुकूल आजकल
सोच-समझकर कुछ तय करना
निभते नहीं उसूल आजकल
यूँ ही बच्चे नहीं देखते
सपने ऊल जलूल आजकल