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कुछ और तरह से भी / हस्तीमल 'हस्ती'
Kavita Kosh से
कुछ और तरह से भी
रचनाकार | हस्तीमल 'हस्ती' |
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प्रकाशक | वाणी प्रकाशन |
वर्ष | 2005 |
भाषा | हिंदी |
विषय | |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 94 |
ISBN | 81-8143-323-8 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- इस बार मिले हैं ग़म कुछ और तरह से भी / हस्तीमल 'हस्ती'
- ये मुमकिन है कि मिल जाएँ तेरी खोई चीज़ें / हस्तीमल 'हस्ती'
- हम जिनके लिए शमा की मानिंद जले थे / हस्तीमल 'हस्ती'
- मेरे घर के रस्ते है मस्ज़िद भी बुतख़ाना भी / हस्तीमल 'हस्ती'
- नहीं लगने दी मैंने अपनी क़ीमत कौन मानेगा / हस्तीमल 'हस्ती'
- कोशिशों में दम न था / हस्तीमल 'हस्ती'
- सुबह जुदा है, रात जुदा / हस्तीमल 'हस्ती'
- महल, अटारी, बाग़-बगीचा, मेला-हाट घुमा कर देख / हस्तीमल 'हस्ती'
- दोस्ती, चाहत, वफ़ा इक हद तलक़ / हस्तीमल 'हस्ती'
- आ गया जब से समझ में राज़-ए-खुद्दारी मुझे / हस्तीमल 'हस्ती'
- क्या ख़ास, क्या है आम, ये मालूम है मुझे / हस्तीमल 'हस्ती'
- प्यार में उनसे करूँ शिकायत ये कैसे हो / हस्तीमल 'हस्ती'
- थी अपने हद में धूल अभी कल की बात है / हस्तीमल 'हस्ती'
- रास्ता किस जगह नहीं होता / हस्तीमल 'हस्ती'
- टकराए जैसे आईना पत्थर से बार-बार / हस्तीमल 'हस्ती'
- हम ले के अपना माल जो मेले में आ गए / हस्तीमल 'हस्ती'
- हंसती गाती तबियत रखिए / हस्तीमल 'हस्ती'
- सबकी सुनना अपनी करना / हस्तीमल 'हस्ती'
- जिसको सकून कहते हैं अक़्सर नहीं मिला / हस्तीमल 'हस्ती'
- जिंदगी ने तो बहुत रुतबे दिए अक़्सर हमें / हस्तीमल 'हस्ती'
- जहाँ तलक़ लहरों से रिश्ता नहीं होने वाला / हस्तीमल 'हस्ती'
- हमने जिसको अपना जाना / हस्तीमल 'हस्ती'
- झील का बस एक क़तरा ले गया / हस्तीमल 'हस्ती'
- ख़ुशनुमाई देखना, न कद किसी का देखना / हस्तीमल 'हस्ती'
- आँखों का नशा ज़ुल्फ़ की उलझन नहीं लेते / हस्तीमल 'हस्ती'
- ख़ुद पर गई नज़र तो मुझे सोचना पड़ा / हस्तीमल 'हस्ती'
- काम सभी हम ही निबटाएं यूँ थोड़े ही होता है / हस्तीमल 'हस्ती'
- सबसे अच्छी प्यार की बातें / हस्तीमल 'हस्ती'
- जो बाग़ के फूलों को हिफाज़त नहीं करते / हस्तीमल 'हस्ती'
- अपने वहमो-क़यास रहने दो / हस्तीमल 'हस्ती'
- एक हद तक है नज़र मेरे साथ / हस्तीमल 'हस्ती'
- इस दुनिया का राज़ समझना / हस्तीमल 'हस्ती'
- ये वक़्त का पयाम ज़रा ध्यान में रहे / हस्तीमल 'हस्ती'
- क्यों फ़िदा हैं इस नज़र पर कुछ पता है आपको / हस्तीमल 'हस्ती'
- कांच के टुकड़े को महताब बताने वाले / हस्तीमल 'हस्ती'
- थोड़ी इधर-उधर होती है / हस्तीमल 'हस्ती'
- गुल हो, समर हो, शाख़ हो किस पर नहीं गया / हस्तीमल 'हस्ती'
- ऐसा मौसम आया अबके बड़े दिनों के बाद / हस्तीमल 'हस्ती'
- थोड़ा सा क्या देखा अम्बर / हस्तीमल 'हस्ती'
- हम जो आए साफ़ निकल के / हस्तीमल 'हस्ती'
- पहले अपना मुआयना करना / हस्तीमल 'हस्ती'
- आदमी हो या फ़रिश्ता बस यही अक़्सर हुआ / हस्तीमल 'हस्ती'
- तुम क्या आना-जाना भूले / हस्तीमल 'हस्ती'
- अपनी मर्ज़ी से हम ढलान में थे / हस्तीमल 'हस्ती'
- सपनें, यादें, डर, अनुराग / हस्तीमल 'हस्ती'
- जिस शख्स को ग़म अपने भुलाने नहीं आते / हस्तीमल 'हस्ती'