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कुम्हार के हाथ से / विहाग वैभव
Kavita Kosh से
यही सही समय है जगत की पुनर्रचना की
मुनादी पिटवाकर इसी दम
सृष्टि की सभी कार्यवाहियाँ स्थगित की जाएँ
ग्रहों को ठहर जाना चाहिए जहाँ के तहाँ
चींटियो ! अब गह लो पाताल की नींद
ध्वनियो ! सन्नाटा रचो
अर्थो ! वापस आओ अपने शब्दों में
पीड़ाओ ! मुझे अचेत करो
जंगलो, पर्वतो, आसमानो
नए आकार के लिए पिघलो
मनुष्यो ! अपनी देह से बाहर निकलो
यही सही समय है मनुष्यता की पुनर्रचना की
मुनादी पिटवाकर इसी दम
मनुष्य की सभी कार्यवाहियाँ स्थगित की जाएँ ।