भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
के बाँटतै दरद / प्रदीप प्रभात
Kavita Kosh से
काका, काकी, छोटकी बहिन
ऐलोॅ छै गाँव छोड़ी काल
घोॅर-ऐंगन सब्भें भसलै
भसलै भैंस, बकरी, गाय
बाँसोॅ के चचरी पर बैठी
चेथरू काका कानै
माल-मवेशी, आरो जिनिसोॅ
खातिर माथोॅ धूनै
चारों ओर मचलोॅ छै तबाही
हरियैलोॅ खेतोॅ के होलै बरबादी
कोसी मैया करवट लेलकै
लाखों-लाख बेघर भेलै।
भूखोॅ सें बिलसै छै मुनिया
कानी रहलोॅ छै-
चुनिया, मुनिया, धुनिया।