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कैसा आया काल / सौरभ
Kavita Kosh से
धुँध कोहरे से भरी धरती
दिन में हो गई रात
पँछी दुबके घोंसलों में
कैसा आया काल
धरती हुई लाल बिना महाभारत
रक्षक बने भक्षक
कौए करें गुटरगूँ
घोड़े खाएँ घास
पँछी-पँछी को खाए
इन्सान खाए इन्सान।