भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कैसे कैसे हादसे सहते रहे / वाजिदा तबस्सुम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कैसे कैसे हादसे सहते रहे
फिर भी हम जीते रहे हँसते रहे

उसके आ जाने की उम्मीदें लिए
रास्ता मुड़ मुड़ के हम तकते रहे

वक़्त तो गुज़रा मगर कुछ इस तरह
हम चराग़ों की तरह जलते रहे

कितने चेहरे थे हमारे आस-पास
तुम ही तुम दिल में मगर बसते रहे