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कोई अच्छे शेर सुनाता / रोशन लाल 'रौशन'

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कोई अच्छे शेर सुनाता
मैं भी अपना जी बहलाता

बारिश में फिर कैसे आता
टूट गया है मेरा छाता

सावन तो सूखा ही बीता
भादों तो पानी बरसाता

जिनके सुख-दुख खोटे सिक्के
ऐसों से क्या रिश्ता-नाता

इतनी उलझी-उलझी राहें
किन क़दमों से आता-जाता

साँपों को फिर दूध पिलाया
किस-किस से आख़िर शरमाता

वो देखो जाता है 'रौशन'
शंख फूँकता गाल फुलाता