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कोई जिये या कोई मरे / नासिर काज़मी
Kavita Kosh से
कोई जिये या कोई मरे
तुम अपनी-सी कर गुज़रे।
दिल में तेरी यादों ने
कैसे कैसे रंग भरे
अब वो उमंगे हैं न वो दिल
कौन अब तुझको याद करे
प्यार की रीत निराली है
कोई करे और कोई भरे
फूल तो क्या, कांटे भी नहीं
कैसे उजड़े बाग़ हरे
बादल गरजा, पवन चली
फुलवारी में फूल डरे
पतझड़ आने वाली है
रस पीकर उड़ जा भँवरे।