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कोई दूसरी / लीलाधर मंडलोई
Kavita Kosh से
लौटी जब-जब
पराजय में थकी
अंधेरा चौतरफ़
और रास्ता ग़ुम
जब-जब हारने को हुई
कोई दूसरी थी उसके भीतर
जो उठ खड़ी हुई हर बार