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कोई बिजली इन ख़राबों में घटा रौशन करे / इरफ़ान सिद्दीकी

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कोई बिजली इन ख़राबों में घटा रौशन करे
ऐ अँधेरी बस्तियो! तुमको खुदा रौशन करे

नन्हें होंटों पर खिलें मासूम लफ़्ज़ों के गुलाब
और माथे पर कोई हर्फ़े-दुआ रौशन करे

ज़र्द चेहरों पर भी चमके सुर्ख जज़्बों की धनक
साँवले हाथों को भी रंगे-हिना रौशन करे

एक लड़का शहर की रौनक़ में सब कुछ भूल जाए
एक बुढ़िया रोज़ चौखट पर दिया रौशन करे

ख़ैर अगर तुम से न जल पाएँ वफाओं के चराग़
तुम बुझाना मत जो कोई दूसरा रौशन करे