भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोई मेरे पीछे / निकानोर पार्रा / श्रीकान्त दुबे
Kavita Kosh से
मेरे दाहिने कन्धे के ऊपर से झाँक कर
मेरा लिखा हरेक हर्फ़ पढ़ता है
मेरी दुश्वारियों पर हँसता है बेशर्मों सरीखा
लबादे वाला कोट पहने और छड़ी थामे एक शख़्स
मैं पलटकर देखता हूँ तो कोई नहीं मिलता
हालाँकि मुझे मालूम है कि मेरी जासूसी हो रही है।
मूल स्पानी भाषा से अनुवाद : श्रीकान्त दुबे