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कौन कहाँ कौ राव / शृंगार-लतिका / द्विज

सोरठा
(कवि की प्रस्ताविक उक्ति अपने प्रति)

कौन कहाँ को राव, कहा बापौरे सुरभि मैं ।
नाँहक करि चित-चाव, कत बसंत बरनन करौ ॥५०॥