भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कौन थे मेरे लिये तुम / आनन्द बल्लभ 'अमिय'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्वप्न में गुम-सा कहीं था, प्रीति का उन्माद लेकर
द्वय विचारों के गणित में, कौन थे मेरे लिये तुम?

मैं चला था पुष्प लेकर,
द्वार तेरे, अर्चना के।
पा सकूँ तुझको शुभे!
शुचि-नेह की शुभ साधना से,।
हाँ तनिक भर देखकर प्रिय! मैं तुम्हीं में हो गया गुम।
द्वय विचारों के गणित में, कौन थे मेरे लिये तुम?

मुग्ध था लोचन चपल में,
स्याह कुंतल मेघवर्णी।
भाल द्युति आभा ललित सी,
देह पट धर श्यामवर्णी।
खो गया तारुण्य में प्रिय! भूल तन-मन हो गया द्रुम।
द्वय विचारों के गणित में, कौन थे मेरे लिये तुम?

बात जीवन की सकल थी,
मैं पलों को जी रहा था।
युग-युगों से प्यासा प्राणी,
ज्यों कि अमृत पी रहा था।
नैन ही नैनन सुनयने! हो गये तब एक हम-तुम।
द्वय विचारों के गणित में, कौन थे मेरे लिये तुम?