भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कौनसा बीज था/ वत्सला पाण्डे
Kavita Kosh से
कब एक बीज
आ गिरा था
मुझमें
आंखों में
सरसराई हरीतिमा
मन में
किसकिसाए पत्ते
पलने लगे थे
देह में
रतनारा गुलमोहर
सुनहला अमलतास
दहकता पलाश
या विराट बरगद
भीनी सी रातरानी
महकता महुआ
बरसता हरसिंगार
कि रिसता गुलाब
तुम एक पथिक
थके मांदे
खिंचे चले आए
क्या बता सकोगे
वह हरीतिमा
वह महक कैसी थीं
वे फूल कौन से थे