भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खत्म हुआ तारों का राग / नासिर काज़मी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खत्म हुआ तारों का राग
जाग मुसाफ़िर अब तो जाग

धूप की जलती तानों से
दश्ते-फ़लक में लग गई आग

दिल का सुनहरा नग़मा सुनकर
अबलक़े-शब ने मोड़ी बाग

कलियाँ झुलसी जाती है
सूरज फैंक रहा है आग

ये नगरी अंधियारी है
इस नगरी से जल्दी भाग।