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ख़ामियाज़ा / ममता किरण

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बहुत दिनों से
नहीं लिखी कोई कविता
नहीं गाया कोई गीत
नहीं सुखाए छत पर बाल
नहीं टाँका बालों में फूल
नहीं पहनी कलफ़ लगी साड़ी
नहीं देखी कोई फ़िल्म
नहीं देखी बाग़ों की बहार
नहीं देखा नदी का किनारा
नहीं सुना पक्षियों का कलरव

क्या महानगर में रहने का
भुगतना पड़ता है
ख़ामियाज़ा ?