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ख़ाली तार / हरिओम राजोरिया

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कैसे-कैसे रो-झींककर मिली आज़ादी
आज़ादी मिलते ही मची मार-काट
सिर्फ दो-चार दिन ही रही आसपास
फिर तार पर बैठी चिड़िया-सी फुर्रऽऽ हो गई
गुण्डे, भक्त, साहूकार, धन्नासेठ हो गए आज़ाद
हमारे हिस्से में आया ख़ाली तार