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ख़ूबसूरत झील में हँसता कँवल भी चाहिए/ मुनव्वर राना

ख़ूबसूरत झील में हँसता कँवल भी चाहिए
है गला अच्छा तो फिर अच्छी ग़ज़ल भी चाहिए

उठ के इस हँसती हुई दुनिया से जा सकता हूँ मैं
अहले-महफ़िल<ref>सभा वालों को</ref>को मगर मेरा बदल<ref>स्थानापन्न</ref> भी चाहिए

सिर्फ़ फूलों से सजावट पेड़ की मुम्किन<ref>संभव</ref>नहीं
मेरी शाख़ों को नए मौसम में फल भी चाहिए

ऐ मेरी ख़ाके- वतन<ref>स्वदेश रज</ref>! तेरा सगा बेटा हूँ मैं
क्यों रहूँ फुटपाथ पर मुझको महल भी चाहिए

धूप वादों की बुरी लगने लगी है अब हमें
सिर्फ़ तारीफ़ें नहीं उर्दू का हल भी चाहिए

तूने सारी बाज़ियाँ जीती हैं मुझपर बैठ कर
अब मैं बूढ़ा हो रहा हूँ अस्तबल भी चाहिए

शब्दार्थ
<references/>