भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़्वाब मेरा अभी कुमारा है / कैलाश झा 'किंकर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़्वाब मेरा अभी कुमारा है
साथ पाने का बस इशारा है।

साँस का भी हिसाब रखता हूँ
बेहिसाबी नहीं गँवारा है।

खुल के बहने दें और तेजी से
ज़िन्दगी भी नदी की धारा है।

आप खुश हैं जहान भी है खुश
रोने वाला तो बे-सहारा है।

हर घड़ी तल्खियाँ बनी रहतीं
दिल है इसका कि इक शरारा है।

सबसे माँ-बाप का अलग दरजा
जो न मिलता कभी दुबारा है।