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खिड़की बंद, किवाड़ बंद / केदारनाथ अग्रवाल
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खिड़की बंद, किंवाड़े बंद,
मेरे कोठे में
कोठे की आत्मा बंद।
बाहर दुनिया खुली-खुली,
खुला-खुला आकाश
जग का जीवन खुला-खुला।
मैं कोठे में कैद,
मैं दुनिया में मुक्त;
मैं मरता हूँ भीतर-बाहर;
मैं जीता हूँ बाहर-बाहर।
मेरा मरना-
मेरा जीना
दोनों हैं युग-धर्म-
दोनों हैं संघर्ष।
मुझे चाहिए भीतर-बाहर मेल;
नहीं चाहिए दोनों का अनमेल।
खिड़की खुलें-किवाड़ें उघरें,
कोठे की आत्मा हो मुक्त;
मैं दुनिया-आकाश जिऊँ
मेरी आत्मा भीतर-बाहर एक हो।
रचनाकाल: १०-०९-१९७८