भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खिलवाड़-१ / सुधा ओम ढींगरा
Kavita Kosh से
दिन की आड़ में
किरणों का सहारा ले
सूर्य ने सारी खु़दाई
झुलसा दी.
धीरे से रात ने
चाँद का मरहम लगा
तारों के फहे रख
चाँदनी की पट्टी कर
सुला दी .