भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खिली है आशिष / नंदकिशोर आचार्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


ओर-छोर बरसा है जल
उमस में रँधी धरती
रन्ध्र-रन्ध्र भीगी है

आत्मा तर है !

शीतल बयार-सी इसी से तो
खिली है आशिष
जिस में तुम रच-रच जाते हो !

(1976)