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खुद ब खुद / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
कल रात मेरे दिल का वह कोना
जो अक्सर खाली रहता है
अचानक तुम्हारी याद में
लबालब भर गया
फिर नींद नहीं आयी
जब आँखे बंद हुई तो
रात भर सपने में
तुम आते जाते रहे
सुबह उठा तो
तुम्हारे बदन की खुशबू
मेरे चारो और महक रही थी
ये मेरा दिल
ये मेरा मन
कितना कुछ सोच लेता है
खुद ब ख़ुद